Sunday, 8 December 2024

String theory




मैं समझता हूँ कि विज्ञान की सामान्य रुचि रखने वाले हर मनुष्य ने यह सुना होगा कि हमारे ब्रह्मांड का मूलभूत ढांचा यानी "स्पेसटाइम" स्ट्रिंग्स से बना है। सूक्ष्म जगत में मौजूद ये तंतुनुमा स्ट्रिंग्स वाइब्रेशन (कंपन) करते हैं तो इनसे स्पेसटाइम में तरंगे पैदा होती हैं, जिन तरंगों को हम "पदार्थ" के रूप में ग्रहण करते हैं। आइए, आज आपको इन स्ट्रिंग्स के बारे में कुछ मजेदार बातें बताता हूँ। इन स्ट्रिंग्स का आकार बेहद छोटा यानी 10^-35 मीटर है, अर्थात दशमलव के बाद 35 शून्य मीटर । बेहद छोटा होने के बावजूद इन स्ट्रिंग्स में बेहद प्रचंड तनाव है। अर्थात अगर आपको इन स्ट्रिंग्स को छू कर किसी गिटार के तार की तरह कंपन कराना है, इसके लिए आपको बहुत ज्यादा ताकत लगानी पड़ेगी। कितनी ताकत ? वैल, इन स्ट्रिंग्स में निहित मूलभूत तनाव 10^39 टन है। यानी इसे वाइब्रेट कराने के लिए उतनी ही ताकत चाहिए, जितनी ताकत आपको इस पूरी मिल्की-वे गैलेक्सी के बराबर भारी चीज को अपनी जगह से हिलाने में लगेगी। इतनी ताकत सिर्फ एक स्ट्रिंग को हिलाने के लिए। है न कमाल बात ? इन स्ट्रिंग्स द्वारा पैदा किए गए सबसे छोटे कंपन (तरंग) की ऊर्जा भी प्रोटॉन से 10 लाख खरब (10^19) गुना ज्यादा होती है। सरल शब्दों में इन स्ट्रिंग्स द्वारा निर्मित सबसे छोटे कण की ऊर्जा भी प्रोटॉन से खरबों गुना ज्यादा होती है। अगर ऐसा है, तो कम द्रव्यमान वाले पार्टिकल्स इस दुनिया में मौजूद हैं ही क्यों? वो इसलिए, क्योंकि दृश्य ब्रह्मांड में लगभग 1080 (10 के आगे 80 शून्य) स्ट्रिंग्स हैं और कोई भी स्ट्रिंग डायरेक्टली किसी कण की रचना नहीं करती। वास्तव मे ं इन स्ट्रिंग्स से पैदा हुई शक्तिशाली तरंगे पहले एक-दूसरे से टकराती हैं, एक-दूसरे को कैंसिल आउट अथवा मैग्नीफाई करती हैं। नए-नए वेव पैटर्न्स पैदा होते हैं। इस तरह खरबों खरब वेव कैंसलेशन के बाद अंततः जो वेव्स शेष रह जाती हैं, उन्हें हम पदार्थ कणो ंके रूप में ग्रहण करते हैं। अब अगर आपको स्टिंग के थरथराने से लेकर पदार्थ कणों तक की उत्पत्ति तक का गणित तलाशना हो तो यह कुछ ऐसा मानो  संसार में खरबों लोग जेब में खरबों रुपये लेकर शॉपिंग को निकले और आपको बिना उनसे कोई भी जानकारी लिए बस अनुमान के आधार पर यह ज्ञात करना है कि उन्होंने पूरे दिन क्या-क्या खरीदा, कितने पैसे एक-दूसरे को दिए, कितने पैसे वेस्ट हो गए - जिसके बाद अंततः संसार में 189 रुपये बचे। मुश्किल है न? बस इसी से आप समझ जाइए कि स्ट्रिंग थ्योरी का गणित कितना मुश्किल है और स्ट्रिंग थ्योरी को सुलझाने में वैज्ञानिकों के पसीने क्यों छूटे हुए है। खैर, इतिहास गवाह है कि मनुष्य की मेधा के सामने समर्पण कर देना ही हर रहस्य की अंतिम नियति रही है। स्ट्रिंग्स के पेंचीदा गणित रहस्य एक दिन अवश्य धराशायी होगा। 

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